चंपा Champa Shravika
पिछले तीन सौ वर्ष से दिल्ली के बादशाह के जुल्म से प्रजा त्राहिमाम् त्राहिमाम् पुकारती थी । चारों तरफ जुल्म और जबरदस्ती का राज्य चलता था । इस समय दिल्ली के राजसिंहासन पर शहनशाह अकबर के आते ही देश में एक नई लहर फैल गई । अकबर के हृदय में विभिन्न धर्मो के बारे में जानने की तीव्र जिज्ञासा थी । धर्म का मर्म जानने के लिए वह सब धर्मो को आदर -सम्मान से देखते थे । हिन्दु और मुसलमानों के बीच के बैंर को उन्होंने दूर करने की कोशिश की । धर्मान्धता के कारण यातना तथा कौमी -बखेड़ो का अनुभव करती प्रजा के हृदयों को जोड़ने का प्रयत्न किया ।
सम्राट अकबर अपने विशाल राजमहालय के झरोखे पर खड़े रहकर राजमार्ग पर नजर लगाये हुए थे , तब उन्होंने रास्ते पर से जाते हुए एक जुलूस को देखा । उस जुलूस में रथ में एक श्राविका बैठी थी । आगे-पीछे लोग आनंदपूर्वक चलते थे । श्राविका दो हाथ जोड़कर आसपास खड़े हुए लोगों को वंदन करती थी । बीच -बीच में दान देती थी । आगे वाद्यवृंद था और सब मंगल गीत गा रहे थे ।
शहनशाह अकबर आश्चर्य में डूब गये । अपने राजसेवकों से पूछा कि यह कैसा जुलूस हैं ? तब सेवकों ने जाँच-पड़ताल करके कहा कि जैन धर्म का पालन करनेवाली एक श्राविका ने छः महीने के उपवास कियें हैं । आग्रा के जैन संघ ने इस चंपा नामक श्राविका ने किये हुए दीर्घ तप का बहुमान करने के लिए यह जुलूस निकाला हैं ।
शहनशाह अकबर को आश्चर्य हुआ । क्या सचमुच कोई व्यक्ति बिना भोजन किये छः छः महीनों तक रह सकता हैं ? रात को भोजन करने की अनुमति होते हुए भी एक महीने का रोजा रखना कितना कठिन है यह शहनशाह अच्छी तरह जानते थे ।
अकबर के आश्चर्य में राजसेवकों ने वृद्धि की । उन्होंने कहा , " चंपा नाम की इस श्राविका ने छः महीनों तक दिन या रात को कभी भोजन नहीं किया । अन्न का एक दाना भी मुँह में नही डाला । "
शहनशाह अकबर को यह बात असंभव ज्ञात हुई । उन्होंने सच्चाई परखना निश्चित किया । चंपा श्राविका को आदर से राजमहल में बुलाया । अकबर ने उसे कहा कि ऐसे उपवास कोई कर सकें ऐसा संभवित नहीं हैं ।
चंपा श्राविका ने प्रत्युत्तर दिया कि धर्म के बल से सब संभवित हैं । अकबर ने कहा कि यदि स्वयं ने लगाये चौकी-पहरे की कड़ी निगरानी के बीच चंपा श्राविका महल में उपवास करके रहें , तब उसकी बात सच्ची हैं ।
चंपा श्राविका ने शहनशाह की बात का स्वीकार किया । उचित आदरमान के साथ चंपा श्राविका महल में रही । बाहर सैनिकों का कड़ा पहरा रखा गया । एक महीना बीत गया । सम्राट अकबर ने जाँच-पड़ताल को तो जानकारी प्राप्त हुई कि श्राविका ने जैसा कहा था वैसा ही उन्होंने व्यवहार किया हैं । दिन को या रात को अनाज का एक दाना भी नहीं लिया हैं । अकबर आश्चर्यचकित हुए । चंपा श्राविका ने जितने दिन उपवास किया , उतने दिन मुगल सम्राट ने राज्य में अमारि ( जीव हिंसा पर प्रतिबंध ) का आदेश दिया था । शहनशाह अकबर ने चंपा श्राविका को धन्यवाद दिया । चंपा श्राविका ने नम्रता से कहा , " यह सारा प्रभाव तो धर्म , देव और गुरु का हैं । "
शहनशाह अकबर को जैन धर्म के बारें में जानने की जिज्ञासा जाग्रत हुई । उन्होंने उस समय के आचार्यश्री हीरविजयसूरिजी को पधारने के लिए आदरपूर्वक बिनती की । चंपा श्राविका का छः महीनों का उपवास प्रभु महावीर के बाद किया हुआ छःमासी उपवास का विरल पुण्यतप था । इस उपवास ने शहनशाह अकबर को जैन धर्म , जैन आचार्यों और जैन श्रावक-श्राविकाओं के प्रति आदरभाव उत्पन्न करनेवाला बनाया । सम्राट अकबर ने जैन तीर्थयात्रियों पर लगाया जाता जजिया कर माफ किया और आचार्यश्री हीरविजयसूरिजी से अहिंसा धर्म की महत्ता जानी । चंपा श्राविका के विरल तप का कैसा विशिष्ट प्रभाव ।
समग्र विश्व में जिनशासन में तप की विशिष्ट महिमा हैं । तीर्थकरों से लेकर सामान्य श्रावक-श्राविका तक तप का अनुष्ठान दृष्टिगत होता हैं । ऐसी महिमा के कारण ही आज भी पर्युषण के प्रथम दिन चंपा श्राविका का वृतांत व्याख्यान में पढ़ा जाता हैं।
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