*सतवीस देहरी अथवा सातबीस देवरी जिनालय*
*मूळनायक श्री आदिनाथ भगवान*
*चित्तोड़ का क़िला समुद्र की सपाटी से 1850 फूट ऊंचा , 3.5 माईल लम्बा और अंदाज़न आधा माईल चौड़ा उत्तर दक्षिण स्थित पहाडी के ऊपर बना हुआ है ।” गढ तो चित्तोड गढ और सब गढैया" का बिरुद प्राप्त यह क़िला वर्तमान में जर्जर हो गया है । तळेटी से किल्ले की ऊंचाई 500 फूट है ।पहाड के ऊपर समतल भूमि होने से यहाँ पर बहुत सारे कुंड ,तालाब , मंदिर और महेलो आदि का निर्माण किया गया था । पहेले यह क़िले के उपर बड़ी संख्या में आबादी थी परंतु पहाडी के पश्चिम कोण की तरफ़ लगभग 200 घर विद्यमान हैं । बाकी सारे मकान गिर चुके है ।इस किले में बहुत सारी ईमारते आज भी गौरवशाळी अतितकाळ की पवित्र स्मृतियों के साथ खड़ी है । वर्तमान में यहाँ पांच जैन मंदिर है ।*
*1. श्री महावीर स्वामी का घूमटबंधी मंदिर*
*2. श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर*
*3. सतवीस देवरी के नाम से जाना जाने वाला श्री आदिनाथ भगवान का शिखरबंधी मंदिर*
*4. गौमुख के पास श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर*
*5. श्री पार्श्वनाथ भगवान का धाबाबंधी मंदिर.*
*रामपोल में से आगे जाते प्राचीन राजमहल के पास उत्तर दिशा की तरफ एक कळायुक्त मंदिर है । जिसे लोग ' शृंगार चोरी ' के नाम से पहचानते है । मंदिर की चारों तरफ़ मूर्तिआ भरपुर है । हक़ीक़त में शृंगार चोरी तो चित्तोडगढ के सौंदर्य का उत्तम प्रतीक है । मध्यम में एक छोटी वेदी के उपर चार खंम्बे वाली छत्री है और मूळनायक श्री शांतिनाथ भगवान है । नजर पडते ही आंखे ठहर जाती हैं ऐसा मूर्ति का आकर्षण है । संवत 1232 में निर्मित यह सुंदर स्थापत्य संवत 1360 में चित्तोड की लूंट के समय खंडित हो गया था जिसका जीणोद्धार महाराणा कुंभा के खजानची वेलके ने संवत 1505 में करवाया था । प्रतिष्ठा श्री जिनसेनसूरिजी ने करवायी थी ऐसा प्राप्त शिलालेख से जानने को मिलता हैं ।*
*बड़ी पोल के पास जैन मंदिरों के कितने ही अवशेष है । उसमें से*
*' सतवीस देवरी ' के नाम से प्रसिद्ध विशाळ जैन मंदिर बावन जिनालय वाला है । ऐसा कहा जाता है कि इसमें प्राचीन 27 खंडित मंदिरों के खंडहर पड़े हैं जिससे इसका नाम सतवीस देवरी पड़ा है । इसमें से तीन मंदिरों का आचार्य श्री विजयनीतिसूरिजी ने जीणोद्धार करवा कर संवत 1998 महा सुद 2 के दिन प्रतिष्ठा करवाने में आयी थी । यह जिनालय में श्री आदिनाथ भगवान की अति प्राचीन श्याम वर्ण की प्रतिमा मूळनायक बिराजमान है । यहाँ पर बहुत सी मूर्तिआ और परिकर पडे हुए है । एक परिकर का लेख प्राप्त हुआ है जिसके उपर संवत नहीं है परंतु - "* *चैत्रवालगच्छ के प्रतापी आचार्य भुवनचंद्रसूरि के शिष्य , जिन्होंने अपनी विद्धवता से गुर्जरेश्वर और मेवाड के राजाओ और प्रजा को धर्मप्रभावना कर के बहुत ही राजाओं से सम्माननीय बने थे । उनके उपदेश से वर्मनसिंह ने श्री सीमंधर स्वामी और युगमंधर स्वामी की प्रतिष्ठा करवायी .* *" ऐसा उल्लेख है । संवत 1469 , संवत 1505 , संवत 1510 , संवत 1513 , संवत 1536 के लेख प्राप्त हुए है जिसमे से सभी मूर्तिओ को श्वेतांबर आचार्यों ने प्रतिष्ठा करवायी हुयी है
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